भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक ने हाल ही में एक इंटरव्यू में ऐसा बयान दिया, जिसने क्रिकेट प्रेमियों और मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उन्होंने कहा, “धोनी ने मुझे गिरगिट बनने पर मजबूर किया…“। यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन इसके पीछे एक गहरी कहानी है, एक ऐसी कहानी जो भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम, प्रतिस्पर्धा और मानसिक संघर्षों की झलक देती है।
धोनी और दिनेश कार्तिक, एक साथ शुरुआत पर अलग रास्ते
दिनेश कार्तिक और महेंद्र सिंह धोनी, दोनों ही विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में लगभग एक ही समय पर भारतीय क्रिकेट में उभरे। कार्तिक ने साल 2004 में भारतीय टीम के लिए डेब्यू किया और धोनी ने 2004 के अंत में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में पदार्पण किया।
लेकिन जहां धोनी ने कुछ ही मैचों में अपनी धमाकेदार बल्लेबाजी और शांतचित्त नेतृत्व से टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की कर ली, वहीं दिनेश कार्तिक को लगातार संघर्ष करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब कार्तिक को हर मैच के बाद लगने लगा कि उनका चयन अगले दौरे के लिए होगा या नहीं और यही वह मानसिक दबाव था, जिसने उन्हें “गिरगिट” बनने पर मजबूर किया।
गिरगिट बनने का मतलब क्या है?
दिनेश कार्तिक के अनुसार, गिरगिट बनने का मतलब है, हर स्थिति में खुद को ढाल लेना, चाहे वो टीम में बल्लेबाजी क्रम हो, विकेटकीपिंग हो या कोई भी जिम्मेदारी जो उन्हें दी जाए।
उन्होंने कहा कि जब धोनी जैसे खिलाड़ी टीम में हों, जो खुद ही विकेटकीपर हैं और बल्लेबाजी में भी शानदार हैं, तब दूसरे विकेटकीपर को अपनी जगह बनाए रखने के लिए हर भूमिका निभाने की तैयारी रखनी पड़ती है।
दिनेश कार्तिक ने समय-समय पर टीम में ओपनर के तौर पर, मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज के रूप में, कभी-कभी फिनिशर के रोल में, और कई बार विकेटकीपर के बिना भी टीम में अपनी जगह बनाई।
धोनी की मौजूदगी – एक चुनौती या प्रेरणा?
कार्तिक ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि धोनी की सफलता से उन्हें जलन नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसे एक प्रेरणा के रूप में लिया लेकिन जब एक खिलाड़ी इतने लंबे समय तक एक ही भूमिका पर कब्जा जमाए रखे तो दूसरों को अपने करियर को बचाने के लिए नए रास्ते खोजने पड़ते हैं।
कार्तिक के लिए यही रास्ता था अपनी भूमिका बदलते रहना, मौके की तलाश करते रहना और टीम में योगदान देने का हर संभव प्रयास करना।
उनके शब्दों में,
“मैंने हमेशा सोचा कि अगर मुझे टीम में बने रहना है तो मुझे हर रंग में ढलना होगा, जैसे एक गिरगिट। कभी ओपनिंग करूंगा, कभी फिनिशर बनूंगा, कभी विकेटकीपिंग करूंगा और कभी नहीं भी करूंगा।”
एक लंबा संघर्ष लेकिन हार नहीं मानी
धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने 2007 में टी20 वर्ल्ड कप, 2011 में वनडे वर्ल्ड कप और 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीती। इस दौर में दिनेश कार्तिक टीम से अंदर-बाहर होते रहे। कभी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद टीम से बाहर हो जाना तो कभी लंबा इंतजार करना, ये सब उनके करियर का हिस्सा बन गया।
लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वो घरेलू क्रिकेट में प्रदर्शन करते रहे, IPL में अपनी क्षमता दिखाते रहे और जब-जब मौका मिला, उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की।
IPL में मिला नया जीवन
2018 के IPL सीज़न में कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान बनने के बाद दिनेश कार्तिक ने एक बार फिर खुद को साबित किया। उनकी कप्तानी और मैच फिनिश करने की कला ने सबको प्रभावित किया।
उन्होंने अपने टीम मैनेजमेंट स्किल्स, शांत दिमाग और समझदारी से ये दिखाया कि भले ही वो धोनी जैसे कप्तान न बन पाए हों लेकिन उनमें नेतृत्व की पूरी क्षमता है।
धोनी और कार्तिक का रिश्ता, सम्मान और समझदारी
कार्तिक ने हमेशा धोनी को एक लीजेंड की तरह देखा और उनका सम्मान किया। उनके मुताबिक, धोनी ने जो कुछ भी टीम इंडिया के लिए किया, वो काबिल-ए-तारीफ है।
लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि हर खिलाड़ी का संघर्ष अलग होता है और उन्होंने अपने संघर्ष को स्वीकार किया, उससे सीखा और अपने करियर को एक अलग मोड़ देने की कोशिश की।
आज के क्रिकेटरों के लिए सीख
दिनेश कार्तिक की यह कहानी आज के युवा खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी सीख है –
- अगर टीम में जगह नहीं मिल रही है तो हार मत मानो।
- अपनी भूमिका बदलो, अपनी स्किल्स में सुधार लाओ।
- अपने आपको परिस्थितियों के अनुसार ढालो क्योंकि सफलता उसी की होती है, जो समय के साथ बदलना जानता है।
- गिरगिट बनना कोई कमजोरी नहीं बल्कि फ्लेक्सिबिलिटी है, जो हर खिलाड़ी को आनी चाहिए।
अंत मे
दिनेश कार्तिक का यह बयान, “धोनी ने मुझे गिरगिट बनने पर मजबूर किया…”, किसी शिकायत से नहीं बल्कि क्रिकेट की सच्चाई को उजागर करता है। यह बयान बताता है कि एक क्रिकेटर के करियर में संघर्ष, मानसिक दबाव और रोल चेंजिंग का क्या महत्व होता है।
जहां एक तरफ धोनी ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई दी, वहीं दिनेश कार्तिक जैसे खिलाड़ियों ने परदे के पीछे रहकर भी योगदान दिया और जब भी मौका मिला, खुद को साबित किया।
उनकी यह कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो कभी किसी और की सफलता से दबाव महसूस करता है। गिरगिट बनना बुरा नहीं अगर आप हर रंग में चमकना जानते हैं।